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ग़ज़ल
जुस्तुजू उन की दर-ए-ग़ैर पे ले आई है
अब ख़ुदा जाने कहाँ तक मिरी रुस्वाई है
कँवर महेंद्र सिंह बेदी सहर
ग़ज़ल
जंगलों में जुस्तुजू-ए-क़ैस-ए-सहराई करूँ
कब तलक ढूँडूँ कहाँ तक जादा-पैमाई करूँ
मिर्ज़ा मोहम्मद तक़ी हवस
ग़ज़ल
न तो काम रखिए शिकार से न तो दिल लगाइए सैर से
बस अब आगे हज़रत-ए-इश्क़-जी चले जाइए घर ही को ख़ैर से
इंशा अल्लाह ख़ान इंशा
ग़ज़ल
हासिल-ए-ज़ीस्त ज़िया-ए-ख़त-ए-तक़्दीर हो तुम
बज़्म-ए-एहसास में बिखरी हुई तनवीर हो तुम
अयाज़ आज़मी
ग़ज़ल
मोहब्बत में कभी तस्कीन-ए-दिल पाई नहीं जाती
तबीअ'त ख़ुद बहल जाती है बहलाई नहीं जाती
निहाल रिज़वी लखनऊवी
ग़ज़ल
इन आँखों में कई सपने कई अरमान थे लेकिन
सुकूत-ए-लब की तह में किस क़दर तूफ़ान थे लेकिन
सरवर अरमान
ग़ज़ल
मयस्सर इश्क़ में सब्र-ओ-क़रार-ए-दिल नहीं होता
जहाँ तूफ़ान होता है वहाँ साहिल नहीं होता
शंकर लाल शंकर
ग़ज़ल
तुम्हारी याद यूँ एहसास-ए-तन्हाई बढ़ाती है
कि जैसे क़ीमतें चीज़ों की महँगाई बढ़ाती है
बद्र मोहम्मदी
ग़ज़ल
एक ग़ज़ल कहते हैं इक कैफ़िय्यत तारी कर लेते हैं
यूँ दुनिया पर अगली चढ़ाई की तय्यारी कर लेते हैं
फ़रहत एहसास
ग़ज़ल
मैं ने यूँ देखा उसे जैसे कभी देखा न था
और जब देखा तो आँखों पर यक़ीं आता न था